रक्षाबंधन 2025: तिथि, शुभ मुहूर्त, इतिहास, महत्व और आधुनिक परंपराएँ
परिचय
रक्षाबंधन, जिसे संक्षेप में “राखी” भी कहा जाता है, भारत के प्रमुख और पावन त्योहारों में से एक है। यह भाई-बहन के अटूट प्रेम, विश्वास, सुरक्षा और जिम्मेदारी का प्रतीक है। हिंदी में “रक्षा” का अर्थ है सुरक्षा और “बंधन” का अर्थ है संबंध। यह पर्व हर वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र या राखी बांधती है और उसकी लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और सुरक्षा की कामना करती है। बदले में भाई जीवनभर अपनी बहन की रक्षा का वचन देता है।
यह त्योहार न केवल पारिवारिक रिश्तों को मजबूत करता है, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और भावनाओं की गहराई को भी दर्शाता है। रक्षाबंधन 2025 में खास बात यह है कि इस बार पर्व पर कई शुभ योग बन रहे हैं, जो इसे और भी पावन और मंगलमय बनाते हैं।
रक्षाबंधन 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
-
तिथि: शनिवार, 9 अगस्त 2025
-
शुभ मुहूर्त: प्रातः 05:47 से दोपहर 01:24 बजे तक
-
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 08 अगस्त 2025, रात्रि 09:31 बजे
-
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 09 अगस्त 2025, शाम 06:08 बजे
-
विशेष योग: इस वर्ष रक्षाबंधन के दिन श्रवण नक्षत्र, सौभाग्य योग, सर्वार्थसिद्धि योग और शिव योग का संयोग बन रहा है।
-
भद्रा काल: इस वर्ष भद्रा काल का दोष नहीं है, इसलिए सुबह से ही राखी बांधना शुभ रहेगा।
शुभ मुहूर्त में राखी बांधने से भाई-बहन के रिश्तों में प्रेम और सौहार्द बना रहता है और जीवन में सुख-शांति आती है।
रक्षाबंधन का इतिहास और पौराणिक कथाएँ
रक्षाबंधन का इतिहास बहुत पुराना है और इसकी जड़ें पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं में गहराई से जुड़ी हुई हैं।
1. महाभारत की कथा
महाभारत में वर्णन मिलता है कि एक बार भगवान श्रीकृष्ण की उंगली से रक्त बहने लगा। द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया। इससे कृष्ण भावुक हो गए और उन्होंने द्रौपदी को जीवनभर रक्षा का वचन दिया। बाद में चीरहरण के समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचाकर अपना वचन निभाया।
2. इंद्र-इंद्राणी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, असुरों और देवताओं के युद्ध के समय इंद्राणी ने इंद्र देव की रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधा और उनकी विजय की प्रार्थना की।
3. राजा बाली और भगवान विष्णु
भगवान विष्णु ने अपने भक्त राजा बाली की रक्षा के लिए वामन अवतार लिया। बाद में लक्ष्मी जी ने बाली को राखी बांधकर विष्णु जी को उनके लोक से वापस लाने का उपाय किया।
4. रानी कर्णावती और हुमायूँ
मध्यकाल में चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने मुगल सम्राट हुमायूँ को राखी भेजकर अपने राज्य की रक्षा की गुहार लगाई। हुमायूँ ने राखी के मान की रक्षा करते हुए चित्तौड़ की सहायता की।
रक्षाबंधन की रस्में और परंपराएँ
रक्षाबंधन केवल एक धागा बांधने का नाम नहीं, बल्कि यह भावनाओं का उत्सव है।
तैयारी
-
राखी, रोली, चावल, दीपक और मिठाई की थाली सजाई जाती है।
-
घर की सफाई और सजावट की जाती है।
मुख्य अनुष्ठान
-
बहन भाई को तिलक लगाती है।
-
कलाई पर राखी बांधकर मिठाई खिलाती है।
-
भाई बहन को उपहार और जीवनभर रक्षा का वचन देता है।
विशेष मंत्र
राखी बांधते समय यह मंत्र बोला जाता है:
"ॐ येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामनि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥"
भारत में क्षेत्रीय परंपराएँ
भारत के अलग-अलग राज्यों में रक्षाबंधन को अलग-अलग नामों और तरीकों से मनाया जाता है।
-
पश्चिम बंगाल और ओडिशा – इसे “झूलन पूर्णिमा” और “गम्हा पूर्णिमा” के रूप में भी मनाया जाता है।
-
महाराष्ट्र – यहाँ इसे “नारियल पूर्णिमा” कहते हैं, मछुआरे समुद्र की पूजा करते हैं।
-
उत्तर भारत – पारंपरिक तरीके से भाई-बहन का मिलन और राखी बांधने की रस्म होती है।
आधुनिक समय में रक्षाबंधन का महत्व
-
सैनिकों को राखी: बहनें देश की रक्षा करने वाले सैनिकों को भी राखी भेजती हैं।
-
डिजिटल राखी: विदेश में रहने वाले भाई-बहन ऑनलाइन गिफ्ट और वर्चुअल राखी भेजते हैं।
-
इको-फ्रेंडली राखी: पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए मिट्टी, बीज या कपड़े से बनी राखी का चलन बढ़ा है।
रक्षाबंधन से जुड़े भावनात्मक पहलू
रक्षाबंधन भाई-बहन के रिश्ते में प्रेम, त्याग, विश्वास और अपनापन भर देता है। यह दिन बचपन की यादों, हंसी-मजाक और एक-दूसरे के प्रति समर्पण की भावनाओं को ताज़ा करता है।
निष्कर्ष
रक्षाबंधन केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है। यह त्योहार हमें यह संदेश देता है कि रिश्तों की डोर जितनी मजबूत होगी, जीवन उतना ही खुशहाल होगा। रक्षाबंधन 2025 में हम न केवल अपने भाइयों-बहनों के लिए, बल्कि समाज के हर उस व्यक्ति के लिए सुरक्षा और प्रेम की भावना रखें जो हमारे जीवन का हिस्सा है।